वृक्कक (Kidney)

paribhaasha (definition)

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं।

गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं।

औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम

(retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है।

गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है। गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं। गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है। कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है। जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है। पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है।

शरीर रचना

अवस्थिति (Situation )

मनुष्यों में, गुर्दे उदर गुहा में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) नामक रिक्त स्थान में स्थित होते हैं। इनकी संख्या दो होती है और इनमें से एक-एक गुर्दा मेरुदण्ड के दोनों तरफ एक स्थित होता है; वे लगभग T12 से L3 के मेरुदण्ड स्तर पर होते हैं। दायां गुर्दा मध्यपट के ठीक नीचे और यकृत के पीछे स्थित होता है, तथा बायां मध्यपट के नीचे और प्लीहा के पीछे होता है। प्रत्येक गुर्दे के शीर्ष पर एक अधिवृक्क ग्रंथि होती है। यकृत के कारण उदर गुहा में पाई जाने वाली विषमता के कारण दायां गुर्दा बाएं की तुलना में थोड़ा नीचे होता है और बायां गुर्दा दाएं की तुलना में थोड़ा अधिक मध्यम में स्थित होता है। गुर्दे के ऊपरी (कपालीय) भाग आंशिक रूप से ग्यारहवीं व बारहवीं पसली द्वारा सुरक्षा की जाती है और पूरा गुर्दा तथा अधिवृक्क ग्रंथि वसा (पेरिरीनल व पैरारीनल वसा) तथा वृक्क पट्टी (renal fascia) द्वारा ढंके होते हैं। प्रत्येक वयस्क गुर्दे का भार पुरुषों में 125 से 170 ग्राम के बीच और महिलाओं में 115 से 155 ग्राम के बीच होता है। विशिष्ट रूप से बायां गुर्दा दाएं की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है।

संरचना (structure)

akaar (shape and size)

गुर्दा लगभग 11-14 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 3 सेमी मोटा होता है।

features

गुर्दे की संरचना सेम के आकार की होती है, प्रत्येक गुर्दे में अवतल और उत्तल सतहें पाई जाती हैं। अवतल सतह, जिसे वृक्कीय नाभिका (renal hilum) कहा जाता है, वह बिंदु है, जहां से वृक्क धमनी इस अंग में प्रवेश करती है और वृक्क शिरा तथा मूत्रवाहिनी बाहर निकलती है। गुर्दा सख्त रेशेदार ऊतकों, वृक्कीय कैप्सूल (renal capsule) से घिरा होता है, जो स्वयं पेरिनेफ्रिक (perinephric) वसा, वृक्क पट्टी (गेरोटा की) तथा पैरानेफ्रिक वसा से घिरी होती है। इन ऊतकों की अग्रवर्ती (अगली) सीमा पेरिटोनियम है, जबकि पश्च (पिछली) सीमा ट्रांसवर्सैलिस पट्टी है।

दाएं गुर्दे की ऊपरी सीमा यकृय से सटी हुई होती है; और बायीं सीमा प्लीहा से जुड़ी होती है। अतः सांस लेने पर ये दोनों ही नीचे की ओर जाते हैं।

गुर्दे का पदार्थ, या जीवितक (parenchyma), दो मुख्य संरचनाओं में विभक्त होता है: ऊपरी भाग में वृक्कीय छाल (renal cortex) और इसके भीतर वृक्कीय मज्जा (renal medulla) होती है। कुल मिलाकर ये संरचनाएं शंकु के आकार के आठ से अठारह वृक्कीय खण्डों की एक आकृति बनाती हैं, जिनमें से प्रत्येक में मज्जा के एक भाग को ढंकने वाली वृक्क छाल होती है, जिसे वृक्कीय पिरामिड (मैल्पिघी का) कहा जाता है। वृक्कीय पिरामिडों के बीच छाल के उभार होते हैं, जिन्हें वृक्कीय स्तंभ (बर्टिन के) कहा जाता है। नेफ्रॉन (Nephrons), गुर्दे की मूत्र उत्पन्न करने वाली कार्यात्मक संरचनाएं, छाल से लेकर मज्जा तक फैली होती हैं। एक नेफ्रॉन का प्रारंभिक शुद्धिकरण भाग छाल में स्थित वृक्कीय कणिका (renal corpuscle) होता है, जिसके बाद छाल से होकर मज्जात्मक पिरामिडों में गहराई तक जानी वाली एक वृक्कीय नलिका (renal tubule) पाई जाती है। एक मज्जात्मक किरण, वृक्कीय छाल का एक भाग, वृक्कीय नलिकाओं का एक समूह होता है, जो एक एकल संग्रहण नलिका में जाकर रिक्त होती हैं।

प्रत्येक पिरामिड का सिरा, या अंकुरक (papilla) मूत्र को लघु पुटक (minor calyx) में पहुंचाता है, लघु पुटक मुख्य पुटकों (major calyces) में जाकर रिक्त होता है और मुख्य पुटक वृक्कीय पेडू (renal pelvis) में रिक्त होता है, जो कि मूत्रनलिका बन जाती है।

2 poles

  • upper pole
  • lower pole is pointed

2 surfaces

  • anterior surface is irregular
  • posterior surface is flat

2 borders

  • lateral border is convex
  • medial border is concave
  • middle part shows a depression the hilum

hilum

  • aage se peeche (anterior to posterior)
  • renal vein– renal artery – renal pelvis

RELATIONS

रक्त की आपूर्ति (blood supply)

गुर्दे बायीं तथा दाहिनी वृक्क धमनियों से रक्त प्राप्त करते हैं, जो सीधे औदरिक महाधमनी (abdominal aorta) से निकलती हैं। अपने अपेक्षाकृत छोटे आकार के बावजूद गुर्दे हृदय से निकलने वाले रक्त का लगभग 20% भाग प्राप्त करते हैं।

प्रत्येक वृक्कीय धमनी अनेक खण्डात्मक धमनियों में विभाजित हो जाती है, जो आगे अंतर्खण्डात्मक धमनियों (interlobar arteries) में बंट जाती हैं, जो वृक्कीय कैप्सूल का छेदन करती हैं और वृक्कीय पिरामिडों के बीच स्थित वृक्कीय स्तंभों से होकर गुज़रती हैं। इसके बाद अंतर्खण्डात्मक धमनियां चापाकार धमनियों (arcuate arteries), जो छाल तथा मज्जा की सीमा पर होती हैं, को रक्त की आपूर्ति करती हैं। प्रत्येक चापाकार धमनी विभिन्न अंतर्खण्डात्मक धमनियां प्रदान करती है, जो अभिवाही धमनियों को भरती हैं, जो ग्लोमेरुली को रक्त की आपूर्ति करती हैं।

इंटरस्टिटम (interstitum) (या इंटरस्टिशियम (interstitium)) गुर्दे में कार्यात्मक स्थान है, जो एकल तंतुओं (केशिकास्तवक) के नीचे स्थित होता है, जो कि रक्त वाहिनियों से परिपूर्ण होते हैं। इंटरस्टिटम मूत्र से पुनर्प्राप्त हुए द्रव को अवशोषित कर लेता है। अनेक स्थितियों के कारण इस क्षेत्र में दाग़-धब्बे या रक्त-संचय हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे के कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है और यह काम करना बंद भी कर सकता है।

शोधन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाने पर रक्त शिरिकाओं के एक छोटे नेटवर्क से होकर गुज़रता है, जो अंतर्खण्डात्मक शिराओं की ओर अभिसरण करती हैं। शिराएं भी धमनियों जैसे वितरण पैटर्न का ही पालन करती हैं, अभिवाही शिराएं चापाकार शिराओं को रक्त प्रदान करती हैं और फिर वहां से यह अंतर्खण्डात्मक शिराओं की ओर जाता है, जो रक्ताधान के लिये गुर्दे से बाहर निकलने वाली वृक्कीय शिरा का निर्माण करती हैं।

ऊतक-विज्ञान (microscopic anatomy)

वृक्कीय ऊतक-विज्ञान में गुर्दे की एक सूक्ष्मदर्शी के द्वारा दिखाई देने वाली संरचना का अध्ययन किया जाता है। गुर्दे में अनेक विशिष्ट कोशिका-प्रकार पाए जाते हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रकार शामिल हैं:

  • गुर्दे की केशिकास्तवक पार्श्विक कोशिका (Kidney glomerulus parietal cell)
  • गुर्दे का केशिकास्तवक पोडोसाइट (Kidney glomerulus podocyte)
  • गुर्दे की समीपस्थ नलिका ब्रश सीमा कोशिका (Kidney proximal tubule brush border cell)
  • लूप्स ऑफ हेन्ले पतली खण्ड कोशिका (Loop of Henle thin segment cell)
  • मोटी आरोही अंग कोशिका (Thick ascending limb cell)
  • गुर्दे की दूरस्थ नलिका कोशिका (Kidney distal tubule cell)
  • गुर्दे की संग्रहण नलिका कोशिका (Kidney collecting duct cell)
  • गुर्दे की इंटरस्टिशीयल कोशिका (Interstitial kidney cell)

अभिप्रेरणा (stimulation)

गुर्दा और स्नायु तंत्र वृक्कीय जाल (renal plexus) के माध्यम से आपस में संवाद करते हैं, जिसके रेशे गुर्दे तक पहुंचने के लिये वृक्कीय धमनियों के साथ जुड़े होते हैं। अनुकंपी स्नायु तंत्र से प्राप्त इनपुट गुर्दे में वाहिकासंकीर्णक (vasoconstriction) को अभिप्रेरित करता है, जिससे वृक्कीय रक्त प्रवाह में कमी आती है। ऐसा माना जाता है कि गुर्दे सहानुकम्पी स्नायु तंत्र से इनपुट प्राप्त नहीं करते. गुर्दे से निकलने वाले संवेदक इनपुट मेरुदण्ड के T10-11 स्तरों की ओर बढ़ता है और संबंधित अंतर्त्वचा (dermatome) द्वारा महसूस किया जाता है। अतः बगल में महसूस होने वाला दर्द गुर्दे से संबद्ध हो सकता है।

कार्य (function)

मुख्य लेख: गुर्दे की बनावट अम्ल-क्षार संतुलन, इलेक्ट्रोलाइट सान्द्रता, कोशिकेतर द्रव मात्रा (extracellular fluid volume) को नियंत्रित करके और रक्तचाप पर नियंत्रण रखते हुए गुर्दे पूरे शरीर के होमियोस्टैसिस (homeostasis) में भाग लेते हैं। गुर्दे इन होमियोस्टैटिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से व अन्य अंगों, विशिष्टतः अंतःस्रावी तंत्र के अंगों, के साथ मिलकर, दोनों ही प्रकार से पूर्ण करते हैं। इन अंतःस्रावी कार्यों की पूर्ति के लिये विभिन्न अंतःस्रावी हार्मोन के बीच तालमेल की आवश्यकता होती है, जिनमें रेनिन, एंजियोटेन्सिस II, एल्डोस्टेरोन, एन्टिडाययूरेटिक हॉर्मोन और आर्टियल नैट्रियूरेटिक पेप्टाइड आदि शामिल हैं।

गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं। परिशोधन, जो कि वृक्कीय कणिका में होता है, एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाएं तथा बड़े प्रोटीन रक्त से छाने जाते हैं और एक अल्ट्राफिल्ट्रेट का निर्माण होता है, जो अंततः मूत्र बनेगा. गुर्दे एक दिन में 180 लीटर अल्ट्राफिल्ट्रेट उत्पन्न करते हैं, जिसका एक बहुत बड़ा प्रतिशत पुनरवशोषित कर लिया जाता है और मूत्र की लगभग 2 लीटर मात्रा की उत्पन्न होती है। इस अल्ट्राफिल्ट्रेट से रक्त में अणुओं का परिवहन पुनरवशोषण कहलाता है। स्राव इसकी विपरीत प्रक्रिया है, जिसमें अणु विपरीत दिशा में, रक्त से मूत्र की ओर भेजे जाते हैं।

कार के अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं। इनमें प्रोटीन अपचय से उत्पन्न नाइट्रोजन-युक्त अपशिष्ट यूरिया और न्यूक्लिक अम्ल के चयापचय से उत्पन्न यूरिक अम्ल शामिल हैं।

परासरणीयता नियंत्रण प्लाज़्मा परासरणीयता (plasma osmolality) में किसी भी उल्लेखनीय वृद्धि या गिरावट की पहचान हाइपोथेलेमस द्वारा की जाती है, जो सीधे पिछली श्लेषमीय ग्रंथि से संवाद करता है। परासरणीयता में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एन्टीडाययूरेटिक हार्मोन (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे द्वारा जल का पुनरवशोषण किया जाता है और मूत्र की सान्द्रता बढ़ जाती है। ये दोनों कारक एक साथ कार्य करके प्लाज़्मा की परासरणीयता को पुनः सामान्य स्तरों पर लाते हैं।

एडीएच (ADH) संग्रहण नलिका में स्थित मुख्य कोशिकाओं से जुड़ा होता है, जो एक्वापोरिन (aquaporins) को मज्जा में स्थानांतरित करता है, ताकि जल सामान्यतः अभेद्य मज्जा को छोड़ सके और वासा रिएक्टा (vasa recta) द्वारा शरीर में इसका पुनरवशोषण किया जा सके, जिससे शरीर में प्लाज़्मा की मात्रा में वृद्धि होती है।

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