पक्ष (Aspect)

क्रिया व्यापार (प्रक्रिया) को देखना क्रिया का पक्ष कहलाता है। प्रत्येक कार्य का व्यापार किसी काल अवधि के बीच होती है जो प्रारंभ से अंत तक फैला होता है। इस अवधि में होने वाले कार्य व्यापार को देखना पक्ष कहलाता है।

उदाहरण के लिए -

क्रिया आरंभ होने वाली है

या

वर्तमान में चालू है

या

पूरी हो चुकी है।

इसे समझने के लिए एक अन्य उदाहरण लेते हैं -

पानी बरसने वाला है

या

बरस रहा है

या

बरसने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।

पक्ष के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं, लेकिन कहीं-कहीं इसके 7 भेद भी बताए गए हैं।

आरम्भबोधक पक्ष -

इससे क्रिया के आरंभ होने की सूचना मिलती है।

जैसे -

  1. रमेश चलने लग गया है।
  2. कैलाश स्नान करने लग गया है।
  3. रमेश पढ़ने लग गया
  4. रमेश पढ़ने जा रहा हैं

सातत्यबोधक पक्ष

इससे क्रिया के वर्तमान में लगातार चालू रहने का आभास होता है। जैसे -

  1. अजय पड़ रहा है।
  2. मीना स्नान कर रही है।
  3. रमेश पढ़ रहा हैं

प्रगतिबोधक पक्ष

इससे क्रिया में लगातार वृद्धि होने का बोध होता है जैसे -

  1. बाढ़ का पानी लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
  2. रमेश पढ़ते ही जा रहा हैं

पूर्णताबोधक पक्ष

इससे क्रिया के पूरी तरह समाप्त होने का बोध होता है। जैसे -

  1. सचिन दौड़ चुका है।
  2. रवीना स्नान कर चुकी है।
  3. रमेश पढ़ चुका हैं

नित्यबोधक (अपूर्ण) पक्ष

इसमें क्रिया के नित्य होने का बोध होता है परंतु वह पूरी नहीं होती है। जैसे -

  1. सूर्य पूर्व में उदय एवं पश्चिम में अस्त होता है।
  2. रमेश एक शिक्षक है।

आवर्तीबोधक पक्ष

इसमें क्रिया बार-बार घटित होने का आभास होता है। जैसे-

  1. सूर्य पूर्व से निकलता है।
  2. राम विद्यालय जाता है।

अभ्यासबोधक पक्ष

इससे क्रिया का अभ्यासवश होने का आभास होता है। जैसे -

  1. अजय रोज सुबह घूमने जाता है।
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