यकृत शरीर का एक अंग है, जो केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है। मनुष्यों में, यह पेट के दाहिने-ऊपरी हिस्से में डायाफ्राम के नीचे स्थित होता है, और मानव शरीर की शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र (Hepatic duct system) तथा पित्तवाहिनी (Bile duct) द्वारा ग्रहणी (Duodenum), तथा पित्ताशय (Gall bladder) में चला जाता है। पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह मुख्य स्थान है। इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे पित्ताशय कहते है। यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही संचित होता है। चयापचय में इसकी अन्य भूमिकाओं में ग्लाइकोजन भंडारण का विनियमन, लाल रक्त कोशिकाओं का अपघटन और हार्मोन का उत्पादन शामिल है।
स्वाभावित लक्षण एवं स्थिति यह लालपन लिए भूरे रंग का बड़ा मृदु, सुचूर्ण एवं रक्त से भरा अंग है। मृदु होने से अन्य अंगों के दाब चिन्ह इस पर पड़ते हैं, फिर भी यह अपना आकार बनाए रखता है। यह श्वासोछवास के साथ हिलता रहता है। यकृत के दो खंड होते है, इनमें दक्षिण खंड बड़ा होता है। यकृत पेरिटोनियम (peritoneum) गुहा के बाहर रहता है। यकृत उदरगुहा में सबसे ऊपर डायाफ्राम (diaphragm) के ठीक नीचे, विशेष रूप से दाहिनी ओर रहते हुए, बाईं ओर चला जाता है। स्वाभाविक अवस्था में पर्शकाओं (ribs) के नीचे इसे स्पर्श नहीं किया जा सकता।
पाँच स्तर
right surface
पृष्ठ भाग (Surface) दक्षिण पृष्ठ उत्तल और चौकोर होता है। यह डायाफ्रॉम से संबद्ध रहता है, जो इसे दक्षिण फुप्फुसावरण और छह निचली पर्शुकाओं से विलग करता है।
उर्ध्व पृष्ठ (Superior surface) यह दोनों ओर उत्तल तथा मध्य में अवतल होता है। यह डायाफ्रॉम द्वारा दोनों फुफ्फस, फुप्फुसावरण तथा ह्रदयावरण से विलग हो जाता है।
अग्र पृष्ठ (Anterior surface) यह त्रिभुजाकार होता है। त्रिभुज का आधार दाहिने होता है। इसके सामने उदरीय ऋजु पपेशियाँ (Rectus abdominus), उनका आवरण उदर सीवनी (Linea alba) तथा हँसियाकार स्नायु (Falci form-ligament) रहते हैं।
अध:पृष्ठ (Inferior surface) यह उत्तलावतल होता है। यह (1) दक्षिण वृक्क, (2) दक्षिण उपवृक्क, (3) वृहदांत्र दक्षिण बंक (Right flexure), (4) पक्वाशय का द्वितीय भाग, (5) पित्ताशय तथा (6) आमाशय से संबद्ध रहता है। ये अंग प्राय: इस पर अपना खाता सा बना लेते हैं।
पश्च पृष्ठ (posterior surface ) यह सामने वक्र बनाते हुए रहता है। दाहिने डायाफ्राम द्वारा दक्षिण पर्शुकाआं, दक्षिण फुप्फुस और उसके फुप्फुसावरण (pleura) से विलग किया जाता है तथा दक्षिण अधिवृक्क (supra renal) से संबद्ध रखता है। अध: महाशिरा (inferior venacava) इसमें लंबी खात बनाते हुए जाती है। इस खात के वाम भाग में दक्षिण यकृत खंड का एक और खंड है, जिसे पुच्छिल (caudate) खंड कहते हैं, जो महाधमनी (aorta) के वक्षीय भाग डायाफ्राम द्वारा विलग किया जाता है। पुच्छिल खंड वाम खंड से एक विदर द्वारा अलग किया जाता है, जिसमें शिंरा स्नायु (ligamentum venosum) रहता है। इस स्नायु विदर के वाम और वाम खंड के पश्चिम पृष्ठ पर ग्रसिका (oesophagus) खाता रहता है।
एक किनारा
inferior border is sharp
interlobar notch for ligamentum teres cystic notch for fundus of gall bladder
दो खंड
पुच्छिल खंड (caudate lobe) यह काम ओर शिरा स्नायु के विदार, दक्षिण और अध: महाशिरा विदार ओर निर्वाहिका यकृत के मध्य से होता हुआ दक्षिण खंड से जुडा रहता है, पुच्छिल प्रवर्ध (Caudatte process) कहते हैं। इसके वाम और पुच्छिल खंड का नुकीला भाग अंकुरक प्रवर्ध कहलाता (Papillary process) हैं।
चतुरस्त्र खंड (quadrangular lobe) यकृत अध:पृष्ठ पर दिखाई देता है। इसके वाम और तंत्र स्नायु विदर तथा दक्षिण ओर पित्ताशय खुला रहता है।
पेरिटोनियम के द्विगुणित पर्त इसके स्नायु (ligament) बनाते हैं। ये स्नायु हैं:
(1) चक्रीय (coronary), (2) हँसियाकार (falciform), (3) गोल (teres), (4) सिरा,
(5) वाम एवं दक्षिण त्रिकोण (triangular) स्नायु तथा (6) लघुवपा (lesser omentum)।
यकृत स्नायुओं, उदरीय अन्त: दाब, रक्त वाहिनियों तथा वायुमंडलीय दाब के कारण अपने स्थान पर स्थित रहता है।
यकत का कार्य- 1. ग्लूकोज से बनने वाले ग्लाइकोजन (शरीर क लिये इन्धन) को संग्रहित करना। आवश्यकता होने पर, ग्लाइकोजन ग्लूकोस में परिवर्तित होकर रक्तधारा में प्रवाहित हो जाता है। 2. पचे हुए भोजन से वसाओं और प्रोटीनों को संसिधत करने में मदद करना। 3. रक्त का थक्का बनाने के लिये आवशक प्रोटीन को बनाना। 4. विषहरण (डीटॉक्सीफिकेशन) 5. भ्रुणिय अवस्था में यह रक्त (खून) बनाने का काम भी करता है। 6. bile salt और bile pigment का स्रवण करता है! 7. रक्त से bilirubin को अलग करता है. 8. गैलेक्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है. 9. कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन को वसा में परिवर्तित करता है . 10. antibody और antigen का निर्माण करता है. 11. यकृत अमोनिया (Nh3) को यूरिया(NH2coNH2) में परिवर्तित करता है। 12. यकृत विटामिन ए को भी संग्रहित करता है।
यह पाँच तलवाले नुकीला भाग वाम ओर रहता है। अन्य चार तल ऊर्ध्व, अध:, पूर्व तथा पश्च कहलाते हैं। इसका अध: तल चारों ओर पतले किनारे से घिरा रहता है तथा उदर गुहा के अन्य अंग इस तल से संबद्ध रहते हैं।
माप एवं भार इसकी दक्षिण-बाम लंबाई 17.5 सेंमी0, अध: ऊँचाई 16 सेंमी0 तथा पूर्व-पश्च चौड़ाई 15 सेंमी0 होती है। इसका भार शरीर के भार का 1/50 भाग के लगभग, प्राय: 1,500 ग्राम से 2,000 ग्राम तक होता हैं। शरीर के भार से इसके भार का अनुपात स्त्री पुरूषों में एक ही होता है, परंतु वय के अनुसार बदलता है। बालकों में इसका भार शरीर के भार का 1/20 भाग होता है।
caudate lobe | |
central vein | |
cystic notch | |
ductus venosus | |
falciform ligament | |
gastric impression | |
hepatic artery | |
hepatic veins | |
hepatocytes | |
interlobar notch | |
kupffer cells | |
ligamentum teres | |
liver acinus | |
porta hepatis | |
portal lobule | |
portal triad | |
portal vein | |
quadrate lobe | |
sinusoid | |
tuber omentale |
निर्वाहिका यकृत् (portal hepatics) यह अनुप्रस्थ दिशा में 5 सेंमी0 लंबा खाता है। यह यकृत के अध: तल पर रहता है। इसके दोनों ओष्ठ पर लघुता संलग्न रहता है। इसमें ये यकृत् धमनी, निर्वाहिका शिरा (portal vein) एवं नाड़ियाँ यकृत् में प्रवेश करती हैं संयुक्त यकृत् वाहिनी और लसिका वाहिनियाँ बाहर निकलती हैं।
रक्तवाहिनियाँ एवं नाड़ियाँ 1. यकृत धमनी उदरगुहा (coeliac) धमनी की शाखा है।
निर्वाहिका शिरा- पाचन तंत्र से पाचित अन्नरसयुक्त रक्त लाती है।
यकृत शिराएँ (Hepatic veins)- रक्त को अध: महाशिराएँ ले जाती है।
लसिकावाहिनियाँ- ये यकृत शिराओं और निर्वाहिका शिरा के साथ जाती हैं। यकृत की अनुंपी (sympathetic) तथा परानुकंपी (parasympathetic) तंत्रिकाएँ सीलक जाती तथा वेगस तंत्रिका से आती हैं।